मातः दुर्गे! सिंहवाहिनि सर्वशक्तिदायिनि मातः शिवप्रिये ! तुम्हारे शक्यंश से उत्पन्न हम भारत के युवकगण तुम्हारे मंदिर में आसीन हैं, प्रार्थना करते हैं,-सुनो मातः, भारत में आविर्भूत होओ, प्रकट होओ।
मातः दुर्गे! युग-युग में मानव शरीर में अवतीर्ण हो जन्म-जन्मांतर में तुम्हारा ही कार्य कर तुम्हारे आनन्दधाम को लौट जाते हैं। इस बार भी जन्म ले तुम्हारे ही कार्यव्रती हैं हम, सुनो मातः, भारत में आविर्भूत होओ, हमारी सहायता करो।
मातः दुर्गे ! सिंहवाहिनि, त्रिशूलधारिणि, वर्म-आवृत-सुन्दर-शरीरे, मातः जयदायिनि ! भारत तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है, तुम्हारी वही मंगलमयी मूर्ति देखने के लिये उत्सुक है। सुनो मातः, भारत में आविर्भूत होओ, प्रकट होओ।
मातः दुर्गे ! बलदायिनि, प्रेमदायिनि, ज्ञानदायिनि, शक्तिस्वरूपिणि भीमे, सौम्य-रौद्र-रूपिणि ! जीवन-संग्राम में, भारत-संग्राम में तुम्हारे ही प्रेरित योद्धा हैं हम, दो मातः, प्राण में, मन में असुर की शक्ति, असुर का उद्यम दो और हृदय और बुद्धि में दो देवता का चरित्र, देवता का ज्ञान ।
मातः दुर्गे ! जगत्-श्रेष्ठ भारतजाति निविड़ तिमिर से आच्छन्न थी। तुम मातः, गगनप्रांत में धीरे-धीरे उदय हो रही हो, तुम्हारे स्वर्गीय शरीर की तिमिर-विनाशी आभा से उषा का प्रकाश हुआ है। आलोक-विस्तार करो, मातः, तिमिर का विनाश करो।
मातः दुर्गे ! तुम्हारी सन्तान हम, तुम्हारे प्रसाद से, तुम्हारे प्रभाव से महत् कार्य के, महत् भाव के उपयुक्त हों। विनष्ट करो क्षुद्रता, विनष्ट करो स्वार्थ, विनष्ट करो भय।
मातः दुर्गे ! कालीरूपिणी नृमुंडमालिनि दिगंबरि, कृपाणपाणि देवि असुरविनाशिनि ! क्रूरनिनाद से अंतःस्थ रिपुओं का विनाश करो। एक भी हमारे भीतर जीवित न रह जाये, हम विमल, निर्मल हो जायें, बस, यही प्रार्थना है मातः, प्रकट होओ।
मातः दुर्गे ! स्वार्थ से, भय से, क्षुद्राशयता से म्रियमाण हो रहा है भारत। हमें महत् बनाओ, महत्प्रयासी बनाओ, उदारचेता बनाओ, सत्संकल्पी बनाओ। अब और अल्पाशी, निश्चेष्ट, अलस, भयभीत न बने रहें हम।
मातः दुर्गे! योगशक्ति का विस्तार करो। तुम्हारी प्रिय आर्य-सन्तान हैं हम, लुप्त शिक्षा, चरित्र, मेधाशक्ति, भक्ति-श्रद्धा, तपस्या, ब्रह्मचर्य, सत्य-ज्ञान का हममें विकास कर जगत् में वितरण करो। मानवसहायि दुर्गतिनाशिनि जगदम्बे, प्रकट होओ।
मातः दुर्गे ! अन्तःस्थ रिपुओं का संहार कर बाहर के बाधा-विघ्नों को निर्मूल करो। बलशाली, पराक्रमी, उन्नतचेता जाति भारत के पवित्र काननों में, उर्वर खेतों में, गगनसहचर पर्वतों के नीचे, पूतसलिला नदियों के किनारे, एकता में, प्रेम में, सत्य में, शक्ति में, शिल्प में, साहित्य में, विक्रम में, ज्ञान में श्रेष्ठ बन निवास करे, मातृचरणों में यही प्रार्थना है, प्रकट होओ।
मातः दुर्गे ! हमारे शरीर में, योगबल से प्रवेश करो। यंत्र तुम्हारे, अशुभविनाशी खड्ग तुम्हारे, अज्ञानविनाशी प्रदीप तुम्हारे बनेंगे हम, भारतीय युवकों की यह अभिलाषा पूर्ण करो। यंत्री होकर यंत्र चलाओ, अशुभहंत्री होकर खड्ग घुमाओ, ज्ञान-दीप्तिप्रकाशिनी होकर प्रदीप हाथ में लो मातः, प्रकट होओ।
मातः दुर्गे ! तुम्हें पाने पर फिर विसर्जन नहीं करेंगे, श्रद्धा-भक्ति-प्रेम की डोरी से बांधे रखेंगे। आओ मातः, हमारे मन में, प्राण में, शरीर में प्रकट होओ।
वीरमार्गप्रदर्शिनि, आओ ! अब विसर्जन नहीं करेंगे। हमारा अखिल जीवन अनविच्छिन्न दुर्गापूजा हो, हमारे समस्त कर्म अविरत पवित्र प्रेममय शक्तिमय मातृसेवाव्रत हों, यही प्रार्थना है, मातः, भारत में आविर्भूत होओ, प्रकट होओ।