थम दृष्टि में ही जिसको पहचान गया अभ्यन्तर,
अपना स्वामी, जीवन का सर्वस्व, हृदय का ईश्वर
हे मेरे प्रभु, तू मेरी श्रद्धाञ्जलि स्वीकृत कर!-
तेरे ही हैं मेरे निखिल विचार, भावना, चिन्तन !
मेरे उर आवेग, हृदय संकल्प, सकल संवेदन;
तेरे ही हैं मेरे जीवन के व्यापार प्रतिक्षण,
मेरे तन का एक-एक अणु, शोणित का प्रति कण-कण !
सर्व भांति, सम्पूर्ण रूप से तेरी हूं मैं निश्चय
प्रिय, सर्वथा, अशेष रूप से तेरी ही निःसंशयः
तेरी इच्छा से परिचालित होगा मेरा जीवन,
केवल तेरी ही विधि का मैं, नाथ, करूंगी पालन !
जीवन-मरण कि हर्ष-शोक भेजे तू या सुख-दुःख क्षण,
तेरे वरदानों का नित्य करेगा उर अभिवादन
दिव्य देन होगी तेरी प्रत्येक देन मेरे हित,
वह सदैव, प्रभु, परम हर्ष की वाहक होगी निश्चित!